🌿 बिल्व पत्र की विशेषता 🌿
भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए तो उन्हें “आशुतोष” भी कहा जाता है।
बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही उपयोगी है। जिस पेड़ पर यह फल लगता है वह शिवद्रुम कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धिदायक माना गया है।
🙏 भगवान शंकर का प्रिय
भगवान शंकर को भांग, धतूरा और बिल्व पत्र अत्यंत प्रिय हैं। शिवरात्रि के अवसर पर विशेष रूप से इनसे पूजन किया जाता है। त्रिपत्रक (तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र) शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक माना जाता है।
📜 बिल्वाष्टक और शिव पुराण
शिव पूजन में बिल्व पत्र का महत्व बिल्वाष्टक, शिव पुराण और अन्य शास्त्रों में मिलता है। देवी-देवताओं में शिव और पार्वती को यह विशेष प्रिय है।
🌸 मां भगवती को बिल्व पत्र
श्रीमद देवी भागवत में स्पष्ट कहा गया है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व पत्र अर्पित करता है, उसे सभी सिद्धियां, पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है।
🌿 बिल्व पत्र के प्रकार
- अखंड बिल्व पत्र: “अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धार्थ लक्ष्मी...” — यह लक्ष्मी सिद्ध है और व्यापार वृद्धि में सहायक होता है।
- तीन पत्तियों वाला: “त्रिदलं त्रिगुणाकारं...” — शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक, पाप नाशक।
- छः से 21 पत्तियों तक: दुर्लभ होते हैं, विशेष रूप से नेपाल में पाए जाते हैं।
- श्वेत बिल्व पत्र: सफेद बेलपत्र का वृक्ष अत्यंत दुर्लभ होता है, पूजन में विशेष फलदायी माना गया है।
🌱 बेल वृक्ष की उत्पत्ति
स्कंदपुराण के अनुसार, देवी पार्वती के पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं जिससे बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इसकी जड़, तना, शाखा, पत्तियाँ और फूल — सभी में देवी शक्ति का वास होता है।
🪔 बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र
“अभव श्रीवृक्ष महादेवप्रियः सदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥”
भावार्थ: हे महादेव को प्रिय वृक्ष! मैं आदरपूर्वक आपकी पत्तियाँ शिव पूजन हेतु ग्रहण करता हूँ।
❌ पत्तियां कब न तोड़ें?
सोमवार, अमावस्या, संक्रांति, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को बिल्व पत्र नहीं तोड़ने चाहिए।
“अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत॥”
🔁 पुनः चढ़ा सकते हैं?
यदि नए बिल्व पत्र उपलब्ध न हों तो पहले से चढ़ाए गए बिल्व पत्रों को धोकर पुनः अर्पित किया जा सकता है।
“अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुनः पुनः।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥”
(स्कंदपुराण)
💊 औषधीय गुण
बिल्व पत्र और इसके विभिन्न अंग पीलिया, कब्ज, सूजन, हृदय रोग, मानसिक तनाव, आंखों के दर्द आदि में अत्यंत लाभदायक हैं। इसका काढ़ा घावों को ठीक करता है और रक्त विकार मिटाता है।
🕉️ पूजन मंत्र:
“त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥”
🔱 रुद्राष्टाध्यायी मन्त्र:
“दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोर पाप संहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥”
“अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्।
कोटिकन्या महादानं ल्व पत्रं शिवार्पणम्॥”
📌 निष्कर्ष:
बिल्व पत्र केवल एक साधारण पत्ता नहीं, बल्कि शिव भक्ति, अध्यात्म और आरोग्य का गहन रहस्य है। इसका पूजन न केवल पुण्यदायक है, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी लाभकारी है।
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