🌴 २६ जुलाई २०२५ शनिवार 🌴
।। श्रावण शुक्लपक्ष द्वितीया २०८२ ।।
‼️ ऋषि चिंतन ‼️
।। वस्त्रों के विषय में भ्रम में न पड़ें ।।
👉 प्राकृतिक चिकित्सा के ग्रन्थों में वस्त्रों की पूर्ण "सादगी" पर बल दिया है - कहा गया है कि वस्त्र यथासम्भव कम और हलके होने चाहिए, जिससे बदन को वायु और प्रकाश मिलता रहे, क्योंकि मनुष्य का चर्म भी प्राणप्रद वायु को भीतर खींचता और दूषित तत्वों को बाहर निकालता रहता है। इससे शारीरिक विकारों की शुद्धि होती है और अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
👉 जो लोग फैशन के कारण एक के ऊपर एक कई वस्त्र पहनते हैं अथवा ठण्ड के भय से ऊनी-सूती वस्त्र लादते हैं, वे वायुमंडल की प्राणशक्ति से वंचित रह जाते हैं। चमकीले व चिकने कपड़े पहनने से शरीर की त्वचा पर हवा नहीं लग पाती और अंदर के दोष बाहर नहीं निकल पाते।
👉 एक विद्वान लेखक ने लिखा है - "ऐसे कपड़े पहनें जिससे हवा और रोशनी शरीर तक पहुँचती रहे।" अतः कपड़े ढीले, पतले और जालीदार हों जैसे मलमल, डोरिया, खादी आदि।
👉 चुस्त वस्त्र जैसे चूड़ीदार, विरजिस, टाइट बनियान शरीर को हानि पहुँचाते हैं। न केवल वायु का प्रवाह रुकता है, बल्कि त्वचा के दोष बाहर नहीं निकल पाते और रक्त संचार में बाधा आती है।
👉 ऊनी बनियान, रुई की बंडी आदि भी त्वचा को कमजोर करती हैं। इससे त्वचा पर रोगों की आशंका रहती है और शरीर शिथिल हो जाता है।
👉 अतः हमें फैशन या झूठे दिखावे से ऊपर उठकर प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली को अपनाना चाहिए। यही ऋषियों की सच्ची शिक्षा है।
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