*🌴।।२५ जून २०२५ बुधवार।।🌴*
*//आषाढ़कृष्णपक्षअमावस्या२०८२ //*
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*‼️ऋषि चिंतन ‼️*
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*❗अंतरात्मा की आवाज सुनिए❗*
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👉 *मनुष्य सामान्यतः जो बाह्य में देखता, सुनता और समझता है, वह यथार्थ ज्ञान नहीं होता, किंतु वह भ्रमवश उसी को यथार्थ ज्ञान मान लेता है।* अवास्तविक ज्ञान को ही ज्ञान समझकर और उसके अनुसार ही कार्यों को करने के कारण ही मनुष्य अपने मूल उद्देश्य-सुख-शांति की दिशा में अग्रसर न होकर विपरीत दिशा में चल पड़ता है।
👉 *"यथार्थ ज्ञान" का अनुभावक मनुष्य का "अंतरात्मा" ही है।* शुद्ध बुद्ध एवं स्वयं चेतन होने से उसको अज्ञान का अंधकार कभी नहीं व्याप सकता। *परमात्मा का अंश होने से वह उसी की तरह "सत्" "चित्" एवं "आनंदमय" है।* जिस प्रकार परमात्मा के समीप असत्य की उपस्थिति असंभव है, उसी प्रकार उसके अंश आत्मा में भी असत्य का प्रवेश संभव नहीं है।
👉 *मनुष्य का अंतरात्मा जो कुछ देखता, सुनता और समझता है वही "सत्य" है, वही "यथार्थ ज्ञान" है।* अंतरात्मा से अनुशासित मनुष्य ही सत्य के दर्शन तथा यथार्थ ज्ञान की उपलब्धि कर सकता है। *"यथार्थ ज्ञान" की उपलब्धि हो जाने पर मनुष्य के सारे शोक-संतापों एवं दुःख-द्वंद्वों का स्वतः समाधान हो जाता है।* जहाँ प्रकाश होगा, वहाँ अंधकार और अज्ञान नहीं होगा, वहाँ दुःख रह ही नहीं सकता। प्रकाश का अभाव ही अंधकार है और ज्ञान की अनुपस्थिति ही दुःख। *दुःख का कोई अपना मौलिक अस्तित्व नहीं है।*
👉 *"अंतरात्मा" की बात सुनना और मानना ही उसका अनुशासन है।* शंका हो सकती है कि क्या मनुष्य का अंतरात्मा बोलता भी है ? हाँ. मनुष्य का अंतरात्मा बोलता है। किंतु उसकी वाणी स्थूल ध्वनिपूर्ण नहीं होती। वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म होती है, जिसे बाह्य एवं स्थूल श्रवणों से नहीं सुना जा सकता। *मनुष्य का अंतरात्मा बोलता है, किंतु मौन विचार स्फुरण की भाषा में, जिसे मनुष्य अपनी कोलाहलपूर्ण मानसिक स्थिति में नहीं सुन सकता।* अंतरात्मा की वाणी सुनने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य का मानसिक कोलाहल बंद हो।
*अंतरात्मा का सान्निध्य मनुष्य को उसकी आवाज सुनने योग्य बना देता है।* यों तो मनुष्य की अंतरात्मा उसमें सदा ओत-प्रोत है किंतु वह तब तक उसका सच्चा सान्निध्य नहीं पा सकता, जब तक वह उससे परिचय नहीं करता, उसे जान नहीं पाता। *परिचयहीन निकटता भी एक दूरी ही होती है।* रेलयात्रा में कंधे-से-कंधा मिलाए बैठे दो आदमी अपरिचित होने के कारण समीप होने पर भी एक-दूसरे से दूर ही होते हैं। अजनबी आदमी को छोड़ दीजिए, जिंदगी भर एक-दूसरे के पास रहने पर भी आंतरिक परिचय के अभाव में एक-दूसरे से दूर ही रहते हैं। वे कभी भी एक-दूसरे को ठीक से नहीं समझ पाते।
👉 *"अंतरात्मा" को जानने का एक ही उपाय है कि उसके विषय में सदा जिज्ञासु एवं सचेत रहा जाए।* जो जिसके विषय में जितना अधिक जिज्ञासु एवं सचेत रहता है, वह उसके विषय में उतनी ही गहरी खोज करता है और निश्चय ही एक दिन उसे पा लेता है। *अपनी आत्मा के विषय में अधिक-से-अधिक "जिज्ञासु" एवं "सचेत" रहिए।* आप अपनी आत्मा से परिचित होंगे, वाणी सुनेंगे, सच्चा मार्ग निर्देशन पाएँगे, तो *अज्ञान से मुक्त होंगे और जीवन में यथार्थ सुख-शांति के अधिकारी बनेंगे।*
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