♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

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                         !! चार आने का हिसाब !!

बहुत समय पहले की बात है, चंदनपुर राज्य का राजा ऐश्वर्यशाली होने के बावजूद अंदर से असंतुष्ट और व्याकुल रहता था। उसने शांति पाने के लिए कई विद्वानों से सलाह ली, पूजा-पाठ कराए, पर मन की बेचैनी दूर नहीं हुई।


एक दिन वह राजा साधारण वेश में नगर भ्रमण को निकला। चलते-चलते वह एक खेत के पास पहुँचा, जहाँ एक किसान पेड़ की छाँव में बैठा सादगी से भोजन कर रहा था। उसके वस्त्र पुराने और फटे हुए थे, लेकिन चेहरे पर सुकून और तृप्ति की झलक थी।


राजा को यह दृश्य बहुत विचित्र लगा। उसने किसान से बातचीत शुरू की और चार स्वर्ण मुद्राएँ देते हुए कहा, "यह खेत तुम्हारा है, ये मुद्राएँ यहीं पड़ी थीं, तुम ही रख लो।"

पर किसान मुस्कुराकर बोला, "सेठ जी, मुझे इनकी आवश्यकता नहीं। मैं प्रतिदिन चार आने कमा लेता हूँ, और उतने में ही मेरा जीवन आनंदपूर्वक बीतता है।"


राजा को आश्चर्य हुआ, "सिर्फ चार आने में जीवन चल जाता है? कैसे?"


किसान बोला, "मैं चार आनों को चार हिस्सों में बाँटता हूँ –

एक को 'कुएँ में डाल देता हूँ',

दूसरे से 'कर्ज चुकाता हूँ',

तीसरे को 'उधार दे देता हूँ',

और चौथे को 'मिट्टी में गाड़ देता हूँ'।"


राजा को यह पहेली समझ नहीं आई, और वह किसान के उत्तर को लेकर सोच में पड़ गया। अगले दिन उसने सभा बुलाई और पूरी कहानी सुनाकर अर्थ पूछने लगा। लेकिन कोई सटीक उत्तर नहीं दे सका, अंततः किसान को दरबार में बुलाया गया।


राजा ने आदरपूर्वक किसान से फिर वही प्रश्न किया –

"अपने चार आने को तुम कैसे खर्च करते हो?"


किसान बोला,

"महाराज,


पहला आना 'कुएँ में डालता हूँ', मतलब अपने परिवार पर खर्च करता हूँ।


दूसरा आना 'कर्ज चुकाने' में, यानी अपने माता-पिता की सेवा में लगाता हूँ।


तीसरा 'उधार', मतलब अपने बच्चों की शिक्षा में।


और चौथा 'मिट्टी में', अर्थात् कुछ बचा कर रखता हूँ ताकि आपात समय में उपयोग कर सकूँ या किसी अच्छे कार्य में लगा सकूँ।"



राजा को अब समझ आ चुका था कि असली सुख ज्यादा कमाने में नहीं, बल्कि कमाई का सही उपयोग करने में है।



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🌟 सीख 🌟


➡️ हमारी कमाई कितनी है, ये उतना मायने नहीं रखता जितना ये कि हम उसे कैसे उपयोग करते हैं।

➡️ सच्ची प्रसन्नता 'प्रबंधन' में है, 'प्राप्ति' में नहीं।

➡️ जीवन को संतुलित बनाने के लिए आमदनी के साथ-साथ विवेकपूर्ण खर्च और बचत ज़रूरी है।

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